हिंदू शादियों का परम्परागत स्वरूप

हिंदू शादियों का परम्परागत स्वरूप

हिंदू शादियों का स्वरूप कहीं खो सा गया है ! वे अब ज़्यादा औपचारिक और खर्चीली हैं ! डिज़ाइनर कपड़े हैं ,ज्वैलरी है ! मँहगी होटलें है ! कॉकटेल है ! डीजे है ! बूफे में छप्पन भोजन हैं और ढेर सारे फ़ोटोग्राफ़र हैं ! घोड़ी की जगह विंटेज कार ने छीन ली है !  पंडित शादी के मंत्र पढ़ते समय आमंत्रितों का मनोरंजन करने की कोशिश करते हैं ! यही सब वजहें हैं जिनके कारण शादियाँ उतनी रसीली रह नहीं गई है जितनी तीस चालीस साल पहले हुआ करती थी !

बारातों का चलन लगभग ख़त्म हो चुका है ! अब कन्या पक्ष ही आमंत्रित होता है ! और तो और फ़ूफा जीजाओं का भी हिंदुस्तानी रूपये की तरह अवमूल्यन हो चुका ! वे अपने पहले की तरह नही रूठते ! इस डर से नहीं रूठते कि कोई मनायेगा नही !

अब वे भी बाक़ी दूसरे मेहमानों की तरह आते हैं और चुपचाप चले जाते है ! अब वैसी सर जोड़कर बातें नहीं होती ! किसी बात का बतगंड नहीं बनता ! चुहलबाजियां नही होती अब ! कुल मिलाकर हमारी शादियों से वो तत्व नदारद होते जा रहे हैं जिनकी वजह से किसी शादी को बरसों याद रखा जाता था !

 बहुत कुछ बेहतर भी है पहले से ! आमंत्रित अब पहले से अधिक शिष्ट बर्ताव करते हैं और कन्या पक्ष बराबरी के धरातल पर है ! अब मेज़बान घर की महिलाओं को पसीना पसीना होते हुए पूड़ियाँ तलने से निजात मिल चुकी ,वे भी पूरी तरह सज संवर कर शादी की रस्मों का आनंद ले पाती है !

एक और अच्छी बात ! आजकल की शादियाँ लड़की के पिता को मौक़ा देती है कि वो हैरान परेशान होने के बजाय ,सूट पहन कर शादी में शामिल हो सकें और लड़की की माँ भी फेरों के वक्त मौजूद होती है !
हाँलाकि अब भी पहले की ही तरह गड़बड़ियाँ होती है शादियों में ! अब भी बहुत से नज़दीकी निमंत्रण दिये जाने से ,मनुहार करने से छूट जाते है ! अब भी बहुत बार बैंड वाला लेट होता है और ज़रूरी चीजें ऐन वक्त पर ग़ायब मिलती हैं ! शादी के बाद अब भी सोचा विचारा जाता है कि ऐसा होता तो और अच्छा होता ,पर राहत की बात यह कि अब भी लोग ऐसी सभी बातों को शादी का ही हिस्सा मानते हैं !
सबसे अच्छी बात ! शादियाँ पहले भी खुश होने का ,आत्मीय स्वजनों से ,बहुत समय से बिछुड़े दोस्तों से मिलने जुलने का ,अपने शादी लायक़ बच्चों के लिये जीवनसाथी तलाशने का ,सबसे बेहतरीन अवसर थी और आज भी हैं ! 

aastha news

 

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