Kali Mandir Raipur: डेढ़ सौ साल पुराना है रायपुर का ये काली मंदिर, इस मंदिर में है माता का शरीर, तो कोलकाता में है आत्मा

Kali Mandir Raipur: डेढ़ सौ साल पुराना है रायपुर का ये काली मंदिर, इस मंदिर में है माता का शरीर, तो कोलकाता में है आत्मा

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Maa MahaKali Mandir Raipur: छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के आकाशवाणी चौक पर स्थित मां महाकाली मंदिर का बहुत महात्म्य है। ऐसी मान्यता है कि मां काली की आत्मा कोलकाता में और शरीर रायपुर में विद्यमान है। ये मंदिर रायपुर के आकाशवाणी तिराहे पर मुख्य मार्ग पर स्थित है। यहां मां महाकाली के दर्शन करने के लिए पूरे छत्तीसगढ़ से लोग आते हैं।

इस मंदिर के बारे में लोग बताते हैं कि जिस वक्त माता की प्रतिमा की स्थापना हुई, उस वक्त देश में अंग्रेजों का शासन था। इस दौरान असम राज्य के कामाख्या से कुछ नागा साधु आए थे। उस समय रायपुर के इस हिस्से में जंगल हुआ करता था। नागा साधुओं ने जंगल में महाकाली के स्वरूप को निरूपित किया। 3 दिन यहां रुके और महाकाली को प्रतिष्ठित कर आगे की यात्रा पर निकल गए।

बरगद के पेड़ के नीचे भैरवनाथ की प्रतिमा

जहां नागा साधुओं ने अपनी धुनी लगाई थी, वहां वर्तमान में भैरवनाथ की प्रतिमा है। मंदिर के बगल में बरगद का पेड़ है, उसी के नीचे नागा साधुओं ने अपनी धुनी लगाई थी, वहीं पर भैरवनाथ की प्रतिमा स्थापित की गई है। इस मंदिर का जीर्णोद्धार 1992 में कराया गया।

कोलकाता से भी तांत्रिक पहुंचते हैं यहां पूजा करने

इस मंदिर की प्रसिद्धि इतनी है कि यहां तांत्रिक पूजा करने के लिए कोलकाता से तांत्रिक पहुंचते हैं। दरअसल काली मां की मूर्ति का मुख उत्तर दिशा में है, जो तांत्रिक पूजा करने वालों के लिए विशेष महत्व रखता है। यहां चैत्र और शारदीय नवरात्र में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है।

मां महाकाली मंदिर से जुड़ी एक अन्य कथा भी प्रचलित

मंदिर से जुड़ी अन्य कथा के मुताबिक, मां महाकाली स्वयंभू हैं। माता नीम पेड़ के नीचे से निकली हैं। कहा जाता है कि कोलकाता में काली का शरीर है, वहीं आत्मा कहां है, इसकी खोज के लिए कामाख्या के नागा साधु निकले थे। रायपुर पहुंचने पर नागा साधुओं ने नीम और बरगद के पेड़ के पास चार महीने तक अपनी धुनी रमाई। तब नागा साधुओं का कहा था कि एक दिन यहां महाकाली प्रकट होंगी। नागा साधुओं ने बरगद पेड़ के पास भैरव बाबा की भी पूजा-अर्चना की थी, जहां अब भैरव बाबा की प्रतिमा है।

बाद में बनाया गया माता का मंदिर

वर्तमान में मंदिर का जो स्वरूप है, वह पहले नहीं था। नीम पेड़ के नीचे माता जमीन फोड़कर निकली थीं। पहले चबूतरा बनाकर मां की पूजा-अर्चना की जाती थी और अपनी मनोकामना मांगी जाती थी। फिर धीरे-धीरे मूर्ति बनाई गई, मंदिर बनाया गया।

इस साल मां काली की नई प्रतिमा की हुई है प्राण-प्रतिष्ठा

वहीं इस साल यानि 2024 में मां काली मंदिर में ​देवी की नई प्रतिमा की प्राण-प्रतिष्ठा की गई। प्रतिमा के क्षरण होने की वजह से नई प्रतिमा बनवाई गई। मूर्तिकार के अनुसार प्रतिमा जिस काले पत्थर से बनी है, वह एक हजार साल से भी ज्यादा पुराना है।

पुरानी प्रतिमा के क्षरण की वजह से प्रतिमा बदली गई

मंदिर के पुजारी ने करीब 2 साल पहले पूजा करते समय देखा कि प्रतिमा का अभिषेक करने पर कुछ कण निकल रहे हैं। उन्होंने समिति के सदस्यों को मूर्ति के क्षरण के बारे में बताया। तब वाराणसी, प्रयागराज, जगन्नाथ पुरी, हरिद्वार समेत कई तीर्थों के आचार्यों और विद्वानों से चर्चा की गई। तब नई प्रतिमा की प्राण-प्रतिष्ठा का सुझाव मिला।

ओडिशा की खदान से निकले ब्लैक स्टोन से बनी है प्रतिमा

मंदिर समिति के एक सदस्य ने बताया कि मां की नई मूर्ति बनाने के लिए केंदुझार ओडिशा की गहरी खदान से काला पत्थर निकाला गया। ओडिशा के मूर्तिकार ज्योति रंजन परिडा और उनकी टीम ने पूरा विग्रह 30 क्विंटल के एक ही पत्थर को तराश कर बनाया है। प्रतिमा का भार 5 क्विंटल के आसपास है। इसे 10 महीने में बनाया गया। नई मूर्ति की लंबाई, चौड़ाई, हाव-भाव, आकृति और आकार पुरानी मूर्ति जैसा ही है। 

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