Shree Vishnu Avtaar: जानें श्रीहरि विष्णु के सभी अवतारों के बारे में, कब और कहां हुआ जन्म
रायपुर, एनपीजी न्यूज। वैसे तो भगवान श्रीहरि विष्णु के 24 अवतारों का वर्णन पुराणों में मिलता है, लेकिन सबसे अधिक चर्चा उनके दशावतारों की होती है, जिसमें से एक कल्कि अवतार होना अभी बाकी है। हम आपको यहां बताएंगे विष्णु जी के 8 अवतारों के बारे में कि उन्होंने कब और कहां जन्म लिया ?
- श्रीमत्स्य अवतार- मत्स्य अवतार भगवान विष्णु का पहला प्रमुख अवतार है। चैत्र शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को कृतमाला तट पर भगवान ने अवतार लिया था। कृतमाला नदी जो दक्षिण भारत में बहती है, उसके तट पर राजा सत्यव्रत तपस्या कर रहे थे। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान ने मत्स्य अवतार लिया। इसी नदी के तट पर मदुरई शहर बसा हुआ है, जो तमिलनाडु राज्य में वर्तमान में है। कृतमाला नदी को ही वेगा या वेगवती के नाम से भी जाना जाता है।
- श्रीकूर्म या कच्छप अवतार- भगवान विष्णु का दूसरा प्रमुख अवतार श्रीकूर्म या कच्छप अवतार है। भगवान ने वैशाख महीने की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा के दिन शाम में क्षीरसागर में अवतार लिया। कूर्म अवतार में भगवान विष्णु ने समुद्र मंथन के समय मंदराचल पर्वत को अपनी पीठ पर धारण किया।
- श्रीवराह अवतार- हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार, भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को वराह जयंती मनाई जाती है। भगवान विष्णु ने इस दिन वराह अवतार लेकर हिरण्याक्ष नाम के दैत्य का वध किया था। वराह यानी शुकर। इस अवतार में भगवान का मुख शुकर का था, लेकिन शरीर इंसान का था। उस समय हिरण्याक्ष नामक दैत्य ने अपनी शक्ति से स्वर्ग पर कब्जा कर पूरी पृथ्वी को अपने अधीन कर लिया था। दैत्य हिरण्याक्ष ने जब पृथ्वी को ले जाकर समुद्र में छिपा दिया, तब ब्रह्माजी की नाक से भगवान विष्णु वराह रूप में प्रकट हुए। सबके आग्रह पर भगवान वराह ने पृथ्वी को ढूंढना प्रारंभ किया। अपनी थूथनी की सहायता से उन्होंने पृथ्वी का पता लगा लिया और समुद्र के अंदर जाकर अपने दांतों पर रखकर वे पृथ्वी को बाहर ले आए। जब हिरण्याक्ष दैत्य ने यह देखा तो उसने भगवान विष्णु के वराह रूप को युद्ध के लिए ललकारा। दोनों में भीषण युद्ध हुआ। अंत में भगवान वराह ने हिरण्याक्ष का वध कर दिया। इसके बाद भगवान वराह ने अपने खुरों से जल को स्तंभित कर उस पर पृथ्वी को स्थापित कर दिया। इसके बाद भगवान वराह अंतर्धान हो गए।
- श्रीनृसिंह अवतार- भगवान विष्णु ने भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष की पंचमी को नृसिंह अवतार लेकर हिरण्यकशिपु नाम के राक्षस का वध कर दिया और उसके भक्त पुत्र प्रह्लाद की रक्षा की। ये अवतार हरिद्वार वराह क्षेत्र में हुआ था।
- श्रीवामन अवतार- भगवान विष्णु का 5वां प्रमुख अवतार वामन अवतार है। उन्होंने भाद्रपद शुक्ल पक्ष की द्वादशी को दोपहर के समय प्रयाग में ये अवतार लिया था। दरअसल सतयुग में असुर बलि ने देवताओं को पराजित करके स्वर्ग पर अधिकार कर लिया था। इसके बाद सभी देवता भगवान विष्णु की मदद मांगने पहुंचे। तब विष्णुजी ने देवमाता अदिति के गर्भ से वामन रूप में अवतार लिया। इसके बाद एक दिन राजा बलि यज्ञ कर रहा था, तब वामनदेव बलि के पास गए और तीन पग धरती दान में मांगी। दैत्य गुरू शुक्राचार्य के मना करने के बाद भी राजा बलि ने वामनदेव को तीन पग धरती दान में देने का वचन दे दिया। इसके बाद वामनदेव ने विशाल रूप धारण किया और एक पग में धरती और दूसरे पग में स्वर्गलोक नाप लिया। तीसरा पैर रखने के लिए कोई स्थान नहीं बचा तो बलि ने वामन को खुद सिर पर पग रखने को कहा। वामनदेव ने जैसे ही बलि के सिर पर पैर रखा, वह पाताल लोक में पहुंच गया। बलि की दानवीरता से प्रसन्न होकर भगवान ने उसे पाताल लोक का स्वामी बना दिया और सभी देवताओं को उनका स्वर्ग लौटा दिया।
- श्रीपरशुराम अवतार- भगवान विष्णु ने बैशाख शुक्ल पक्ष की तृतीया के दिन जमनिया गांव में परशुराम अवतार लिया था। उनका जन्म प्रदोष काल में हुआ था। मान्यता है कि कलयुग में मौजूद 8 चिरंजीवी में से एक परशुराम जी है, जो कि आज भी धरती पर मौजूद हैं। हिंदू शास्त्रों के अनुसार, परशुराम जी को भगवान विष्णु का छठा अवतार माना जाता है। उनके पिता का नाम जमदग्नि और मां का नाम रेणुका था। परशुराम का जन्म ऋषि-मुनियों की रक्षा के लिए हुआ था। इसके साथ ही वह युद्ध कला में माहिर थे। उन्होंने भीष्म पितामह, द्रोणाचार्य और कर्ण जैसे कई योद्धाओं को शिक्षा दी। मान्यताओं के अनुसार, कलयुग में भगवान विष्णु कल्कि के अवतार में जन्म लेंगे। तब भी परशुराम उन्हें युद्ध की नीतियां सिखाएंगे।
- श्रीराम अवतार- भगवान विष्णु ने चैत्र शुक्ल पक्ष की नवमी को 5,114 ईसा पूर्व अयोध्या में अवतार लिया। उन्होंने रावण का वध कर संसार से बुराईयों का अंत किया।
- श्रीकृष्ण अवतार- भगवान विष्णु ने भाद्रपद महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को 3 हजार 112 ईसा पूर्व मध्य रात्रि में मथुरा में अवतार लिया। उन्होंने द्वापर युग में वसुदेव और देवकी की संतान के रूप में जन्म लिया, हालांकि उनका पालन-पोषण यशोदा और नंद बाबा ने किया। उन्होंने कंस समेत कई आततायियों का वध किया। कुरुक्षेत्र के युद्ध क्षेत्र में उन्होंने अर्जुन को भगवद्गीता का ज्ञान दिया।
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