Ratan Tata: छत्तीसगढ़ में अधूरा रह गया टाटा का सपना: 11 साल तक बनी रही उम्मीद, फिर…

Ratan Tata: रायपुर। टाटा ग्रुप छत्तीगसढ़ में बड़ा स्टील प्लांट लगाने की तैयारी में था। इसके लिए सरकार के साथ एमओयू से लेकर जमीन अधिग्रहण की प्रक्रिया तक शुरू हो चुकी थी। यहां के युवाओं को प्रशिक्षण देने सहित अन्य कामों में टाटा ने यहां करोड़ों रुपये निवेश भी किया। इसके बावजूद छत्तीगसढ़ और टाटा ग्रुप का संबंध जुड़ नहीं पाया। करीब 11 साल के लंबे इंतजार के बाद टाटा ने यहां से काम समेट कर ओडिशा का रुख कर लिया।
मामला छत्तीसगढ़ राज्य स्थापना के साथ ही यहां निवेश आने शुरू हो गए। 2003 में डॉ. रमन सिंह के नेतृत्व में पहली बीजेपी सरकार बनी तब टाटा ग्रुप ने भी छत्तीसगढ़ में निवेश करने की इच्छा जताई। उस वक्त छत्तीगसढ़ के बस्तर संभाग में नक्सलवाद चरम पर था। इस वजह से कोई भी उद्योगपति वहां जाने को तैयार नहीं था, ऐसे समय में टाटा ने वहां निवेश की इच्छा जताई और वहां बड़े स्टील प्लांट की स्थापना का प्रस्ताव राज्य सरकार को दिया।
2005 में सरकार औ टाटा के बीच एमओयू पर हस्ताक्षर किया गया। टाटा ने बस्तर के लोहंडीगुड़ा में प्लांट लगाने की तैयारी शुरू कर दी। बड़े प्लांट के लिए ज्यादा जमीन की जरुरत थी। प्लांट के लिए 2 हजार एकड़ से ज्यादा जमीन का प्रस्ताव सरकार को दिया गया। इसमें सरकारी और वनभूमि के साथ ही किसानों की निजी जमीन भी शामिल थी। करीब 1700 किसान प्रभावित हो रहे थे। सरकार की तरफ से जमीन के अधिग्रहण की प्रक्रिया शुरू की गई। 1100 से ज्यादा लोगों ने जमीन का मुआवजा ले लिया। बाकी विरोध करने लगे।
स्थानीय लोगों के विरोध की वजह से कमा आगे नहीं बढ़ पाया और टाटा ग्रुप ने 2016 में यहां से काम समेट दिया और सरकार को लिखकर दे दिया कि अब वो यहां प्लांट नहीं लगा सकती है। इसके बाद 2018 में भूपेश बघेल के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने चुनावी अपने वादें पर अमल करते हुए अधिग्रहित जमीन किसानों को लौटा दी।
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