Nagoi Mahamaya: सरस्वती का साक्षात रूप है नगोई की मां महामाया…
Nagoi Mahamaya: नवरात्रि के पर्व पर एक तरफ भक्तों की कतार विभिन्न देवी मंदिरों में लग रही है वहीं विभिन्न मंदिरों की अलग-अलग विशेषताएं एवं मान्यताएं भी सामने आ रही है। ऐसी एक मान्यता छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले में स्थित बैमा–नगोई मंदिर की भी है। यहां मां महामाया का प्राचीन काल से मंदिर है। जो बिलासपुर शहर से मात्र 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। प्राकृतिक छटाओं के बीच स्थित मंदिर का इतिहास काफी प्राचीन है। मां महामाया आसपास के गांवों और क्षेत्र के लोगों के लिए साक्षरता की देवी के रूप में आस्था का प्रतीक बनी हुई है। नवरात्रि में माता के भक्तन मिलते ही नहीं बल्कि पूरे प्रदेश से पहुंच रहे हैं और भक्तों की लंबी कतार दर्शन हेतु लग रहे हैं।
मां महामाया मंदिर नगोई का इतिहास दशकों पुराना हैं। मान्यता है कि देवी की स्थापना यहां 12वीं शताब्दी में हुई है। तब छत्तीसगढ़ में कलचुरी राजवंश शासन करता था। छत्तीसगढ़ को दक्षिण कोशल के नाम से भी जाना जाता था। दक्षिण कोशल की राजधानी रतनपुर हुआ करती थी। 12वीं शताब्दी से 200 साल पहले दसवीं शताब्दी में रतनपुर मां महामाया मंदिर और मल्हार के डिंडेश्वरी मंदिर की स्थापना हो चुकी थी। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार राजा ने अपने रथ में मां महामाया की एक मूर्ति को रखकर यात्रा कर रहे थे। प्राचीन कहानी के अनुसार रतनपुर के राजा मल्हार से मां महामाया की मूर्ति रतनपुर लेकर जा रहे थे। यात्रा के दौरान घने जंगलों के बीच राजा के रथ का एक पहिया टूट गया। पहिया बदलवाने तक रात हो गई तब राजा ने वही विश्राम करने का निर्णय लिया। राजा एक पेड़ के नीचे विश्राम करने लगे। राजा को गहरी नींद आ गई और नींद में माता ने उन्हें स्वप्न देकर कहा कि मंदिर की स्थापना जिस जगह रथ का पहिया टूट गया है उसी जगह कर दी जाए। नींद खुलने पर राजा ने इसे देवी का आदेश माना और यह सोचा की देवी इसी स्थान पर विराजना चाहती हैं इसलिए रथ का पहिया टूटने से लेकर सपने में दर्शन देने जैसी लीला माता ने स्वयं रची है और उन्हें आदेश दिया है। इसके बाद माता की वही स्थापना कर राजा ने मंदिर बनवा दिया।
उपराजधानी भी बनाई:–
माता का मंदिर बनवाने के बाद मां की सेवा करने के लिए रतनपुर के राजा ने रतनपुर राज्य की उप राजधानी के रूप में नवगई गांव के रूप में जंगलों के बीच किसानों को बसा कर गांव स्थापित किया। जो कालांतर में बदलते हुए नौगई हो गया। वर्तमान में इसे नगोई के रूप में जाना जाता है। ग्राम नगोई में अब तक सैकड़ो साल पुराने तालाब है कुछ भग्नावशेष भी है।
मंदिर की स्थापना रतनपुर राज परिवार के राजपुरोहित स्वर्गीय तेजनाथ शास्त्री के पुत्र स्वर्गीय सीताराम शास्त्री के मार्गदर्शन में रतनपुर राज्य के राजा ने संपन्न करवाया था। सीताराम शास्त्री अपनी न्याय प्रियता के लिए प्रसिद्ध थे। उन्होंने सार्वजनिक तालाब का व्यक्तिगत उपयोग करने पर अपने रिश्तेदारों को भी श्रापित और दंडित किया था।
विद्या की देवी:–
मान्यता है कि बैमा– नगोई की मां महामाया साक्षात देवी सरस्वती का स्वरूप है। देवी के आशीर्वाद के चलते ही प्राचीन समय से गांव में साक्षरता की दर ऊंची रहीं हैं। मंदिर प्रांगण में भी चारों तरफ हरियाली बिखरी हुई है। प्राकृतिक सौंदर्य से आच्छादित मंदिर बेहद सुंदर है और किसी भी मौसम में घनी हरियाली के चलते धूप से भक्तों को बचाकर छाया प्रदान करती है। मंदिर के पास तालाब भी है जिससे यहां का वातावरण और भी मोहक हो जाता है।
गिरनारी बाबा थे माता के अनन्य भक्त:–
जूना अखाड़ा के संत गिरनारी बाबा माता के अनन्य भक्तों में शुमार थे। मां महामाया के दर्शन के लिए रतनपुर जाने के उपरांत वापस लौटते समय नगोई में भी बाबा ने माता के दर्शन किए। बाबा फिर यहीं रुक कर माता की सेवा करने लगे। यहां मंदिर परिसर में माता के अलावा भगवान शिव का भी भव्य मंदिर बनाया गया है एवं अन्य देवी देवताओं के मंदिर भी हैं। दोनों नवरात्रि में मंदिर में भक्त ज्योति कलश जलवाते हैं। वर्ष 2010 में बाबा के ब्रह्मलीन होने के बाद मंदिर की व्यवस्था सुचारू ढंग से चलाने के लिए आदिशक्ति मां महामाया ट्रस्ट बना दी गई है।
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