आग के मुहाने
आजकल पर्यटन के नाम पर जिस तरह संरक्षित क्षेत्रों में रिजार्ट और होटलों का अतिक्रमण बढ़ता जा रहा है, वह एक गंभीर और चिंताजनक विषय है।
सरकारी तंत्र आंखें मूंदे बैठा रहता है जब तक कोई बड़ी दुर्घटना न हो जाए! मानवीय भूलों का खमियाजा मूक जानवरों को भुगतना पड़ता है! पिछले कुछ वर्षों में जिस तेजी से जंगलों और वनों में ट्रैकिंग जैसे खेलों की आड़ में पहले अस्थायी तंबुओं का निर्माण किया जाता है
और धीरे से तंबुओं का स्थान आलीशान होटल और रिजार्ट ले लेते हैं!पर्यटक घूमने फिरने के दौरान इतनी आसवधानी बरतते हैं कि जंगल और वनों में कहीं भी कैंप फायर करके आग जली छोड़ कर चले जाते हैं!
वह धीरे धीरे हवा द्वारा पूरे वन क्षेत्र में फैल जाती है और यह जरा सी असावधानी वन्य जीवों पर बहुत भारी पड़ती है!सरकार को इसके लिए कड़े कदम उठाने की आवश्यकता है! वन विभागों को मुस्तैद होकर वन्य जीवों के संरक्षण के लिए कार्य करना होगा क्योंकि इन क्षेत्रों में जीवों की ऐसी कई प्रजातियों का संरक्षण किया जा रहा है जो विलुप्त होने के कगार पर हैं!
आम लोगों में ऐसे जीवों के प्रति जागरूकता का अभाव है व नहीं जानते कि प्रकृति से एक भी जीव की संख्या का कम होना किस तरह जीवों की पूरी आहार शृंखला को प्रभावित कर सकता है!अभयारण्यों में मानवीय हस्तक्षेप सीमित करने और ऐसे संरक्षित क्षेत्रों में पर्यटन के नाम पर होने वाले प्राकृतिक संसाधनों के दोहन पर रोक लगाना समय की मांग है।
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