Mandodri: लंका की महारानी मंदोदरी थीं अतुल्य सौंदर्य की स्वामिनी, मेंढकी के रूप में की थी 12 साल तक तपस्या, जानें अनसुनी कहानियां
रायपुर, एनपीजी डेस्क। 12 अक्टूबर 2024 को दशहरा का पर्व मनाया जाएगा। दशहरे के दिन भगवान श्रीराम ने लंकापति रावण का वध किया था। आज हम बताएंगे उसकी पत्नी और लंका की महारानी मंदोदरी के बारे में, उनकी अनसुनी कहानियों के बारे में.. हम आपको ये भी बताएंगे कि अगर रावण ने अपनी पत्नी मंदोदरी की बात मान ली होती, तो कभी भी उसका वध नहीं होता।
मंदोदरी थी अतुलनीय सौंदर्य की स्वामिनी
कथा के अनुसार मां सीता के बाद रामायण काल में सबसे सुंदर स्त्री कोई थी तो वो सिर्फ मंदोदरी थी। यहां तक कि लंका प्रवेश के बाद तो एक बार हनुमान जी भी उन्हें देखकर धोखा खा गए थे। सीता जी खोज करते हुए उन्होंने मंदोदरी को पलंग पर लेटे देखा, तो उन्हें भ्रम हुआ कि इतना सौंदर्य तो केवल मां सीता में ही हो सकता है। लेकिन फिर उन्होंने ध्यान से मंदोदरी को देखा, तो पाया कि उनका मुख बहुत प्रसन्नचित्त था। इससे उन्हें भान हुआ कि नहीं ये मां सीता नहीं हो सकतीं, क्योंकि भगवान श्रीराम से दूर होकर मां सीता इतनी खुश नहीं हो सकतीं।
मंदोदरी के पिता थे मायासुर
मंदोदरी के पिता मायासुर असुरों में राजा और एक प्रतिभाशाली वास्तुकार थे। वहीं उनकी मां हेमा एक अप्सरा थी।
मां पार्वती ने दिया था मंदोदरी को मेंढकी बन जाने का श्राप
पौराणिक कथा के अनुसार, मंदोदरी पहले मधुरा नाम की एक अप्सरा थी। एक बार वो कैलाश पर्वत पर पहुंची। यहां वो भगवान शिव पर मोहित हो गई। माता पार्वती उस वक्त कैलाश पर्वत पर नहीं थीं। इधर मधुरा भगवान शिव को रिझाने की कोशिश करने लगी। इसी बीच मां पार्वती आ गईं और ऐसा करता देखकर मधुरा को मेंढकी बनने का श्राप दे दिया। उन्होंने कहा- कि अब मधुरा को 12 वर्षों तक एक मेंढकी बनकर कुएं में रहना होगा। माफी मांगने पर माता ने कहा कि अगर तुमने 12 वर्षों तक कठोर तपस्या कि तो मेंढकी की योनि से मुक्ति मिल जाएगी। मधुरा ने 12 वर्षों तक उस कुएं में रहकर मेंढकी रूप में कठोर तप किया।
मायासुर और हेमा ने मधुरा नाम की अप्सरा को बनाया बेटी, नाम रखा मंदोदरी
इधर असुरों के राजा मायासुर और उनकी पत्नी हेमा उसी जगह पर पहुंचे, जहां मधुरा कठोर तपस्या कर रही थी। मधुरा की तपस्या पूर्ण होने पर उसे मेंढकी की योनि से मुक्ति मिल गई। उसे उसका पुराना शरीर वापस मिल गया। वो खुद को बचाने के लिए शोर मचाने लगी। उसकी आवाज सुनकर मायासुर और हेमा वहां आए। उन्होंने मधुरा को कुएं से निकाला। उसे देखकर दोनों के मन में वात्सल्य जाग गया। दोनों उसे अपनी पुत्री बनाकर घर ले आए। उसकी छरहरी काया के कारण उन्होंने उसका नाम मंदोदरी रखा। वैसे भी मायासुर और हेमा के पहले से 2 बेटे थे और उनकी बहुत इच्छा एक बेटी की थी।
रावण और मंदोदरी की शादी
एक समय रावण मायासुर की नगरी में पहुंचा। वहां वो मंदोदरी को देखते ही मोहित हो गया। उसने मायासुर से मंदोदरी का हाथ मांगा। रावण इतना शक्तिशाली था कि उससे लोहा लेने का मायासुर सोच भी नहीं सकता था, इसलिए उसने तत्काल हां कह दी और इस तरह से रावण और मंदोदरी की शादी हो गई। जोधपुर से सटा मंडोर शहर मंदोदरी का मूल स्थान माना जाता है। हालांकि कई लोग मध्यप्रदेश के मंदसौर को भी मंदोदरी का मायका मानते हैं।
मंदोदरी से रावण को 2 बेटे हुए
मंदोदरी और रावण के दो बेटे मेघनाद और अक्षयकुमार थे। मेघनाद का वध लक्ष्मण जी ने किया, वहीं अक्षय कुमार का वध हनुमान जी ने किया था।
रावण अगर पत्नी की बात मानता, नहीं मारा जाता
मंदोदरी भगवान श्रीराम की शक्तियों से परिचित थी। उसे पता था कि ये भगवान विष्णु के अवतार हैं और इन्हें नहीं हराया जा सकता। मंदोदरी ने आखिरी समय तक पति रावण को समझाने की बहुत कोशिश कि वह सीता को लौटा दे और श्रीराम की शरण में चला जाए, लेकिन रावण ने इसे अस्वीकार कर दिया था। हालांकि मंदोदरी वेदों, शास्त्रों और विभिन्न कलाओं में इतनी निपुण थी, इतनी ज्ञानी थी कि उससे बाकी मामलों में रावण भी परामर्श लेता था।
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