Khallari Mata Mandir: यहीं पर हुआ था महाबलशाली भीम और हिडिंबा का विवाह, जानें यहां माता खल्लारी कैसे हुईं विराजित
रायपुर, एनपीजी डेस्क। अभी 3 अक्टूबर से शारदीय नवरात्र चल रहे हैं। छत्तीसगढ़ में भी कई प्राचीन देवी मंदिर हैं, जहां पूरे भक्तिभाव से मां के सभी स्वरूपों की पूजा-अर्चना की जा रही है। आज NPG NEWS पर हम आपको बताएंगे महासमुंद जिले में स्थित खल्लारी माता के मंदिर के बारे में…
खल्लारी में प्रकृति मोह लेती है मन
खल्लारी माता मंदिर के चारों ओर बेहद मनोरम प्राकृतिक दृश्य हैं। ये जिला मुख्यालय से 24 किलोमीटर दूर घने जंगलों और पहाड़ियों से घिरा हुआ है। खल्लारी माता मंदिर का इतिहास महाभारतकालीन है। दरअसल राजा पांडु को 5 पुत्र थे, जिनमें से एक थे महाबलशाली भीम। कहा जाता है कि यहां भीम और राक्षसी हिडिंबा का विवाह संपन्न हुआ था।
महाभारत काल से संबंधित है खल्लारी
इसी जगह पर माता खल्लारी का मंदिर बनाया गया। यहां उपलब्ध शिलालेखों से पता चलता है कि खल्लारी मंदिर 1415 इस्वी के आसपास बना है, यानि ये मंदिर बेहद प्राचीन है। करीब 609 साल पुराना। 600 साल से ज्यादा प्राचीन मंदिर की काफी मान्यता है। यहां श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है, खासतौर पर नवरात्रि के दिनों में यहां न केवल छत्तीसगढ़ बल्कि आसपास के राज्यों से भी लोग पहुंचते हैं।
हिडिंबा के बारे में जानने से पहले महाभारत की ये घटना जानना जरूरी
महाभारत काल यानि द्वापर युग में पांडव पुत्रों युधिष्ठिर, अर्जुन, भीम, नकुल और सहदेव को लाक्षागृह में मारने का षडयंत्र रचा गया। ये साजिश पांडवों के चचेरे भाई दुर्योधन ने रची थी। लाक्षागृह यानि लाख से बनी इमारत। हस्तिनापुर के प्रधानमंत्री और कौरवों और पांडवों के चाचा विदुर को ये बात अपने गुप्तचरों से पता चल गई। तब उन्होंने अपने विश्वासपात्रों के जरिए लाक्षागृह के अंदर ही सुरंग बनवाया। दुर्योधन के षडयंत्र को विदुर ने पांडवों को बता दिया। इधर लाक्षागृह में पांडवों को ठहराया गया। दुर्योधन ने षडयंत्र रचा था कि जब पांडव यहां ठहरेंगे तो लाख से बने इस गृह में आग लगा दी जाएगी, जिससे सभी जलकर मर जाएंगे। हालांकि, पांडवों ने अपनी मां कुंती समेत गुप्त सुरंग के जरिए अपनी जान बचा ली।
भीम की पत्नी हिडिंबा के बारे में जानें
इधर पांडवों ने काम्यक वन में शरण ली। यहां राक्षस हिडिंब अपनी बहन हिडिंबा के साथ रहता था। एक दिन हिडिंब ने मानव गंध मिलने पर अपनी बड़ी बहन हिडिंबा को खाने की तलाश में जंगल में भेजा, जहां हिडिंबा ने पांचों पांडवों और उनकी मां कुंती को देखा। इनमें से भीम को देखते ही हिडिंबा उस पर आकर्षित हो गई। उसने अपना रूप बेहद सुंदर बना लिया। भीम ने उसे देखकर उसका परिचय पूछा तो उसने बताया कि मैं हिडिंबा नाम की राक्षसी हूं।
हिडिंबा हो गई थी भीम पर मोहित
मेरे भाई ने मुझे आप लोगों को पकड़कर लाने के लिए भेजा है, लेकिन मैं आपसे प्रेम कर बैठी हूं और आपसे विवाह करना चाहती हूं। भीम ने भी उसका प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। बहन को देर होता देख हिडिंब वहां पहुंचा, जहां पांडव थे, तो वहां अपनी बहन हिडिंबा और भीम को आलिंगन रत देख हैरान रह गया। इधर हिडिंबा को भाई पर क्रोध हो आया। उसने भीम से कहा कि ये मेरा छोटा भाई हिडिंब है। इसके रहते हम-दोनों एक नहीं हो सकते, इसलिए तुम इसका वध कर दो। इधर भीम ने हिडिंब के साथ युद्ध कर उसका वध कर दिया।
हिडिंबा और भीम का जंगल में हुआ विवाह
जब कुंती और बाकी पांडवों की नींद खुली तो उन्होंने देखा कि भीम ने राक्षस का वध कर दिया है। कुंती ने हिडिंबा के बारे में पूछा, तो उसने सारी बात बता दी। इसके बाद हिडिंबा और भीम का जंगल में ही विवाह हुआ। इन्हें घटोत्कच नामक पुत्र हुआ। हिमाचल प्रदेश के मनाली में घटोत्कच का मंदिर आज भी है। इस घटना के बाद से इस जगह को भीमखोज के नाम से भी जाना जाने लगा। बता दें कि इस मंदिर के अलावा यहां पर भीम चूल्हा, भीम की नाव स्थान भी मौजूद हैं।
यहीं पर बनाया गया है खल्लारी मंदिर। खल्लारी मंदिर को साल 1415 के आसपास तत्कालीन हैहयवंशी राजा हरि ब्रह्मदेव ने बनवाया था। राजा हरि ब्रह्मदेव ने खल्लारी को अपनी राजधानी बनाया, तो उन्होंने इसकी रक्षा के लिए मां खल्लारी की मूर्ति की स्थापना की थी।
खल्लारी पर्यटन स्थल घोषित
छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद से खल्लारी को पर्यटन स्थल भी घोषित किया गया है। बताया जाता है कि पांडवों ने वनवास की कुछ अवधि यहां भी बिताई थी। खल्लारी मंदिर के पश्चिम दिशा की तरफ भीम डोंगा नाम का विशाल पत्थर दिखता है। जिसका एक हिस्सा मैदान की तरफ तो दूसरा हिस्सा गहरी खाई की तरफ झुका हुआ है। यहां पैर की आकृति के बड़े निशान दिखते हैं। माना जाता है कि ये पैर के निशान महाबली भीम के हैं।
मंदिर तक जाने के लिए चढ़नी होती हैं 800 सीढ़ियां
खल्लारी माता मंदिर पहाड़ी पर स्थित है। यहां तक पहुंचने के लिए करीब 800 सीढ़ियां चढ़नी होती हैं। ऐसा माना जाता है कि महाभारत युग में पांडव अपनी यात्रा के दौरान इस पहाड़ी की चोटी पर आए थे।
मां खल्लारी से जुड़ी एक और कथा
लोग बताते हैं कि इस गांव में खल्लारी माता का निवास था। यहां माता लड़की का रूप धारण करके बाजार में आती थी। इसी दौरान एक बंजारा माता के रूप पर मोहित हो गया और उनका पीछा करते हुए पहाड़ी पर पहुंच गया। इससे माता क्रोधित हो गईं और उन्होंने बंजारे को श्राप देकर उसे पत्थर में परिवर्तित कर दिया और खुद भी वहां स्थापित हो गईं।
खल्लारी के बारे में जानें कुछ खास बातें
बता दें कि खल्लारी को पहले मृतकागढ़ नाम से जाना जाता था। वहीं महाभारत काल से इस जगह का संबंध है। उस वक्त इस जगह को खल्वाटिका के नाम से जाना जाता था। ये जगह इतनी प्राचीन है कि इसका जिक्र न केवल द्वापर युग में होने वाले महाभारत में है, बल्कि त्रेता युग से संबंधित रामायण में भी है।
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