वोटर आईडी कार्ड को आधार से जोड़ने का सरकार का फैसला
चुनाव आयोग और सरकार का दावा है कि ऐसा करके ‘फर्जी वोटरों’ को मतदाता सूची से बाहर किया जा सकेगा. जबकि यह बड़े पैमाने पर लोगों के मतदान के अधिकार को प्रभावित करेगा और वोटर फ्रॉड को बढ़ाएगा, इसलिए विपक्ष और जनता को इस ‘खतरनाक’ प्रस्ताव के विरोध में आना चाहिए.
ये फैसला पुट्टास्वामी मामले में भारत के सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का उल्लंघन है.आधार वोट देने के अधिकार का सबूत नहीं है.आधार नागरिकता का प्रमाण नहीं है.इसीलिए आधार संख्या सभी निवासियों को जारी की गई थी न कि नागरिकों को
आधार वोट देने के अधिकार का सबूत नहीं है. आधार नागरिकता का प्रमाण नहीं है, यही कारण है कि आधार संख्या सभी निवासियों को जारी की गई थी न कि नागरिकों को.
जनप्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत केवल भारत में रहने वाले नागरिकों को वोट देने का अधिकार है. इस तरह आधार और वोटर आईडी- दोनों को जोड़ना बेमानी होगा.
क्या आप भूल गए झारखंड को.झारखंड के एक अध्ययन में पाया गया था कि आधार लिंकिंग के दौरान ‘फर्जी’ करार दिए गए 90% राशन कार्ड असली थे. जहां को लिंक करने से वोटर आईडी डेटाबेस की शुचिता प्रभावित होगी.वहीं दूसरी ओर आदिवासी और अति पिछड़े इलाकों के निवासी अपना मताधिकार खो देंगे.
मेरी विनम्र अपील है कि आप लोग सरकार के इस कदम का मर्म समझें और इसका विरोध करें.वरना आने वाले समय में इस फैसले के नुकसानों को हम सब गि न नहीं पाएंगे.
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