क्या पता कल हो न हो

क्या पता कल हो न हो

बहुत-सी महिलाएं मुझसे अपना दर्द साझा करती हैं कि उनके पिता, भाई और पति ने उन्हें उनके मन मुताबिक ज़िंदगी नहीं जीने दी। कई महिलाएं ये कहती हैं कि वो कुछ और करना चाहती थीं, पर घर की ज़िम्मेदारियों के चक्र में फंस कर वो घर की चारदीवारी तक सिमट कर रह गईं। उनका ये अफसोस तब मुखर हुआ, जब ज़िंदगी की फिल्म इंटरवल से अधिक निकल चुकी थी।
संजय जानते हैं कि वो सच कह रही हैं। बहुत-सी महिलाओं के बारे में मैं ही कह सकता हूं कि अगर उन्हें मौका मिला होता तो वो सचमुच कुछ ऐसा कर सकती थीं, जो वो नहीं कर पाईं। नहीं कर पाने का अफसोस उतना नहीं, जितना अफसोस इस बात का है कि वो अपनी मर्ज़ी की ज़िंदगी ही नहीं जी पाईं।

इस दुनिया में हर किसी को अपनी ज़िंदगी जीने का पूरा हक है। वो कानून के दायरे में, सामाजिक नियमों का पालन करते हुए अपनी ज़िंदगी चाहे जैसे जीना चाहे, उसे जीने का हक मिलना चाहिए। संजय कोई सामाजिक गुरू नहीं हैं, जो इतनी बड़ी बात ऐसे कह बैठें और लोगों को नसीहत देने लगें। पर अपने आस-पास की दुनिया को देखने के बाद मैंने महसूस किया है कि जो लोग भी किसी को उसकी मर्ज़ी की ज़िंदगी जीने से रोकते हैं, वो उसके गुनहगार होते हैं।

अब जब मैं महिलाओं की तरफदारी में अपनी कहानियां सुनाता हूं तो कई पुरुष भी मुझसे अपना दर्द साझा करते हैं। बहुत से नहीं कर पाते। महिलाओं की तुलना में पुरुष कम कह पाते हैं। कई पुरुषों ने भी समय-समय पर अपनी शिकायत रखी है कि उनकी पत्नी ने उन्हें उनकी पसंद की ज़िंदगी नहीं जीने दी। पुरुषों के संदर्भ में ये शिकायत थोड़ी सीमित हो जाती है। महिलाओं की शिकायत में पिता, भाई और बहुत अधिक पति की हिस्सेदारी होती है।

लेकिन पुरुष के संदर्भ में पत्नी की ही पूरी हिस्सेदारी होती है।मैं बहुत से लोगों के बारे में क्या कहूं, मैंने अपने बहुत करीब रिश्तेदारी में ही देखा है कि बहुत योग्य, मिलनसार पुरुष भी विवाह के बाद धीरे-धीरे रिश्तों की कड़ियों से दूर होते गए

बचपन में छायावाद गद्य पढ़-पढ़ कर या फिर दादी, नानी की कहानियों की नायिकाओं और मां का असली घरेलू हश्र देख कर लड़कियां यही सोचती हैं कि उनकी ज़िंदगी में सफेद घोड़े पर कोई राजकुमार आएगा और उसके बाद दुनिया उनके कदमों तले होगी, वो अपने पंखों से आसमान में उड़ती फिरेंगी। पर हकीकत के संसार में ऐसा होता नहीं है। सफेद घोड़े तो छोड़िए, सफेद बोलेरो में भी उनका राजकुमार नहीं आता और शादी के तुरंत बाद महिला का सपना टूटने लगता है।

समय के साथ मैंने महसूस किया कि बहुत से रिश्ते जो एक-दूसरे को आगे बढ़ने और बढ़ाने के लिए प्रेरणास्रोत बन सकते हैं, उन्हें जानबूझ कर नून, तेल, लकड़ी के नाम पर उलझा कर बर्बाद कर दिया जाता है। अच्छी भली पत्नी अपनी ज़िंदगी नहीं जी पाती, अच्छा भला पति थम जाता है।
जीवन एक बार मिला है। अगर आप धर्म ग्रंथ पढ़ कर मन में ये सपना संजोए बैठे हैं कि पुनर्जन्म होगा तो आप भयंकर गलतफहमी में हैं। अगर ऐसा होता भी होगा तो आपको उसका फायदा नहीं मिलने वाला। जो है यही जन्म है। इसे दिल खोल कर जी लीजिए। क्या पता कल हो न हो…। एक-दूसरे के सहायक बनिए, अवरोधक नहीं।

aastha news

admin

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *