Bilaspur High Court: छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट का फैसला, राज्य सरकार के कर्मचारियों के लिए बनेगा नजीर

Bilaspur High Court: छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट का फैसला, राज्य सरकार के कर्मचारियों के लिए बनेगा नजीर

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Bilaspur High Court: बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट में एक रोचक मामला सामबे आया है। मामले की सुनवाई के बाद कोर्ट ने राज्य शासन के आला अफसरों से कहा है कि मातहतों पर कार्रवाई से पहले सुनवाई का पर्याप्त अवसर दें। फैसला सुनाने से पहले प्राकृतिक न्याय सिद्धांत का पालन भी करना होगा। छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट का यह फैसला राज्य शासन के कर्मचारियों के लिए नजीर बनेगा।

कमिश्नर दुर्ग सम्भाग का आदेश को रद्द

पत्रिका बाई की शिकायत के आधार पर एक जनवरी 2015 को कमिश्नर दुर्ग संभाग, जिला दुर्ग द्वारा एक आदर्श पारित कर याचिकाकर्ता की नियुक्ति रद्द कर दी गई और उसके स्थान पर पत्रिका निषाद को नियुक्त किया गया। इस फैसले के खिलाफ अनुसुइया बाई ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की है। मामले की सुनवाई के बाद जस्टिस गौतम भादुड़ी ने याचिका को स्वीकार करते हुए कमिश्नर के आदेश को रद कर दिया है। कोर्ट ने पत्रिका बाई की नियुक्ति आदेश को भी रद कर दिया है।

याचिकाकर्ता अनुसुइया बाई ने महिला एवं बाल विकास विभाग द्वारा 04 अक्टूबर 2010 को जारी विज्ञापन के तहत उसने कुम्हलोरी गांव में आंगनबाड़ी सहायिका के पद के लिए आवेदन किया था। चयन प्रक्रिया पूरी होने पर, याचिकाकर्ता को 23 नवम्बर 2011 को कुम्हलोरी गांव के वार्ड क्रमांक दो के लिए आंगनबाड़ी सहायिका के रूप में नियुक्त किया गया। इसी तरह, एक अन्य महिला उम्मीदवार सरिता को कुम्हलोरी गांव के वार्ड क्रमांक एक के लिए नियुक्त किया गया।

असफल उम्मीदवारों में से एक अनीता महार ने कलेक्टर के समक्ष सरिता की नियुक्ति को इस आधार पर चुनौती दी कि राज्य शासन द्वारा दो अप्रैल 2008 को जारी दिशा-निर्देशों के विपरीत गलत तरीके से अंक दिए गए हैं। इसके अलावा राज्य द्वारा जारी दिशा-निर्देश के तहत अपील दायर करने का प्रावधान दिया गया है। सीईओ, जनपद पंचायत द्वारा नियुक्ति की जाती है, क्योंकि यह छत्तीसगढ़ पंचायत (अपील और पुनरीक्षण) नियम, 1995 (इसके बाद नियम, 1995 के रूप में संदर्भित) के अनुसार छत्तीसगढ़ पंचायत राज अधिनियम, 1993 द्वारा शासित होगा, उक्त आदेश को कलेक्टर के समक्ष चुनौती दी गई थी।

याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में कहा है कि इस तरह के निष्कासन आदेश पारित होने से पहले उनकी बात नहीं सुनी गई और उसकी सेवाएं 24 जून 2013 को समाप्त कर दी गईं और उसी तारीख को याचिकाकर्ता के स्थान पर पत्रिका बाई को नियुक्त कर दिया गया। याचिकाकर्ता ने पत्रिका की नियुक्ति आदेश को चुनौती दी थी।

कलेक्टर के समक्ष अपील दायर की गई थी और उक्त अपील को कलेक्टर, राजनांदगांव द्वारा 25 फरवरी 2014 को खारिज कर दिया गया था और उक्त आदेश के खिलाफ पुनरीक्षण को संभागीय आयुक्त के समक्ष दायर किया गया था, जिसे एक जनवरी 2015 को खारिज कर दिया गया था।

याचिकाकर्ता ने कहा, नहीं मिला सुनवाई का अवसर

याचिकाकर्ता का कहना है कि जिस प्रारंभिक आदेश द्वारा 24 जून 2013 को हटाया गया था, तब उसे सुनवाई का कोई अवसर नहीं दिया गया और पत्रिका बाई की नियुक्त आदेश जारी कर दिया। याचिकाकर्ता ने कहा है कि कलेक्टर और आयुक्त दोनों ने उक्त तथ्य पर ध्यान नहीं दिया। इसलिए, कलेक्टर और आयुक्त के आदेश को रद्द करने के साथ ही पत्रिका बाई की नियुक्ति को रद्द करते हुए ऊनी बहाली आदेश की मांग की।

राज्य शासन ने निर्णय को बताया सही

राज्य शासन की ओर से पैरवी करते हुए महाधिवक्ता कार्यालय के अधिवक्ता ने याचिकाकर्ता के तर्कों का विरोध करते हुए कहा कि कलेक्टर के आदेश जिसमें ‘अनीता’ ने ‘सरिता’ की नियुक्ति को चुनौती दी थी, हालांकि, कलेक्टर द्वारा मुख्य कार्यपालन अधिकारी, जनपद पंचायत, राजनांदगांव को विभिन्न उम्मीदवारों द्वारा उठाए गए प्रश्नों की जांच करने और नए सिरे से आदेश पारित करने का एकमात्र निर्देश दिया गया था। नियुक्ति के लिए कुछ निश्चित अंक दिए जाने का प्रावधान है। अधिवक्ता ने कहा कि बेंचमार्क निर्देशों का पालन नहीं किया गया। परिणामस्वरूप, याचिकाकर्ता की नियुक्ति अवैध थी और तदनुसार उसे हटा दिया गया।

याचिकाकर्ता के अंकों की गणना करने पर पाया गया कि गलत वरीयता दी गई थी और अधिक अंक दिए गए थे। परिणामस्वरूप, निष्कासन आदेश पारित किया गया और पत्रिका बाई की नियुक्ति की गई।

अजीबो-गरीब मामला

अभिलेखों के अवलोकन से पता चलता है कि याचिकाकर्ता को चार अक्टूबर 2010 के विज्ञापन के अनुसार 23 नवम्बर 2011 के आदेश द्वारा कुम्हलोरी गांव के वार्ड नंबर दो में नियुक्त किया गया था। 30 मार्च 2013 का आदेश दर्शाता है कि अनिता जो एक असफल उम्मीदवार थी, ने सरिता नामक एक महिला की नियुक्ति को चुनौती दी थी। जिसे कुम्हलोरी गांव के वार्ड नंबर एक के लिए नियुक्त किया गया था। हालाँकि, याचिकाकर्ता की नियुक्ति के आदेश को किसी भी तरह से चुनौती नहीं दी गई थी। चूंकि अपील दायर करने का प्रावधान है, इसलिए छत्तीसगढ़ पंचायत राज अधिनियम, 1993 और छत्तीसगढ़ पंचायत (अपील और पुनरीक्षण) नियम, 1995 के अनुसार अपील दायर की गई। सीईओ, जनपद पंचायत द्वारा आदेश पारित किया गया था, इसलिए इसे कलेक्टर के समक्ष चुनौती दी गई और कलेक्टर ने अपने आदेश द्वारा अनीता की अपील स्वीकार कर ली और सीईओ, राजनांदगांव को निर्देश दिया गया कि ग्राम कुम्हलोरी के संबंध में नियुक्ति के लिए प्राप्त सभी आवेदनों की जांच की जाए। इसके बाद कानून के अनुसार नए आदेश पारित किए जा सकते हैं। राज्य के अनुसार, उसके बाद नियुक्ति के लिए आवेदनों की जांच की गई और नंबर देने के संबंध में कुछ विसंगतियां सामने आई। परिणामस्वरूप याचिकाकर्ता की सेवाओं को 24 जून 2013 के आदेश द्वारा समाप्त कर दिया गया और इसके स्थान पर पत्रिका बाई को नियुक्त किया गया।

अनिता की याचिका के बाद, बना बहस का मुद्दा

पहला मुद्दा जिसने पूरे विवाद को जन्म दिया, वह अनिता महार नामक एक महिला के कहने पर शुरू हुआ, जो एक असफल उम्मीदवार थी और उसने कुम्हलोरी गांव के वार्ड क्रमांक एक के लिए आंगनबाड़ी कार्यकर्ता के रूप में नियुक्त सरिता की नियुक्ति को चुनौती दी थी। इस तरह की अपील पर फैसला करते हुए कलेक्टर ने निर्देश दिया कि कुम्हलोरी गांव के सभी आवेदनों की जांच की जाएगी और उसके बाद नए सिरे से आदेश पारित किए जाएंगे। अनिता महार और सरिता के बीच विवाद में कलेक्टर के निर्देशानुसार सीईओ जनपद बिलासप पंचायत ने जांच एवं निरीक्षण किया

निरीक्षण रिपोर्ट के अवलोकन से यह पता नहीं चलता है कि जब ऐसी जांच की गई थी, तो याचिकाकर्ता, जो पहले से नियुक्त थी, को सुनवाई का अवसर दिया गया था। जब याचिकाकर्ता को 23 नवम्बर 2011 के आदेश द्वारा नियुक्त किया गया था और उसके पक्ष में कुछ अधिकार अर्जित हो चुके थे, तो दो साल बाद बिना सुनवाई का अवसर दिए उसकी सेवाएं कैसे समाप्त कर दी गईं, इसका स्पष्टीकरण नहीं दिया गया है। इस प्रकार, प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का स्पष्ट उल्लंघन हुआ है और नियमों को दरकिनार कर दिया गया है। जब अधिकार किसी उम्मीदवार के पक्ष में अर्जित हो चुके हैं, तो सुनवाई का कोई अवसर दिए बिना सेवाएं समाप्त करना स्पष्ट रूप से प्राकृतिक न्याय के नियमों का उल्लंघन है।

सुनवाई के अवसर देना जरूरी

किसी भी निर्णय लेने से पहले सुनवाई का अवसर प्रदान करना अदालती कार्यवाही में एक बुनियादी आवश्यकता मानी जाती थी। बाद में, इस सिद्धांत को अन्य अर्ध-न्यायिक प्राधिकरणों और अन्य न्यायाधिकरणों पर लागू किया गया और अंततः अब यह स्पष्ट रूप से निर्धारित किया गया है कि प्रशासनिक कार्रवाइयों में भी निर्णय लेने से पहले सुनवाई आवश्यक है।

कोर्ट की विशेष टिप्पणी

कोर्ट ने कहा है कि “कोई भी इस बात पर विवाद नहीं कर सकता कि प्राकृतिक न्याय की तीन विशेषताएं सर्वोपरि हैं,निष्पक्ष न्यायाधिकरण द्वारा सुनवाई का अधिकार, कदाचार के आरोपों की सूचना पाने का अधिकार, और इन आरोपों के उत्तर में सुनवाई का अधिकार। कलेक्टर द्वारा 30 मार्च 2013 के आदेश द्वारा अनिता महार एवं सरिता के मध्य हुए विवाद में सीईओ को मामले की जांच करने का निर्देश दिया गया, अतिरिक्त सर्वग्राही निर्देश दिया गया।”

कोर्ट ने दी हिदायत

कोर्ट ने अपने फैसले में लिखा है कि संपूर्ण जांच करना ही जांच करने का आधार है। ऐसा प्रतीत होता है कि सीईओ, जनपद पंचायत इस तरह की जांच करते समय वरिष्ठ अधिकारी यानी कलेक्टर के निर्देश से दूर रहे। कोई भी प्रतिकूल आदेश पारित करने से पहले याचिकाकर्ता को सुनवाई का न्यूनतम अवसर दिया जाना चाहिए था। याचिकाकर्ता की आशंका है कि पक्षपात हुआ है, जिसे आसपास की परिस्थितियों से समझा जाना चाहिए और आवश्यक निष्कर्ष निकाला जाना चाहिए। पक्षपात शब्द का प्रयोग निष्पक्ष न्याय की स्थिति से विचलन को दर्शाने के लिए किया जाता है।

कलेक्टर व कमिश्नर के आदेश पर गम्भीर टिप्पणी

कोर्ट ने कहा कि “इस मामले में उपरोक्त सिद्धांतों को लागू करने पर, ऐसा प्रतीत होता है कि प्राकृतिक न्याय के नियमों का स्पष्ट उल्लंघन हुआ था और यहां तक ​​कि मामला चुनौती का विषय था और कलेक्टर और कमिश्नर दोनों प्राधिकारियों ने चुनौती के मूल को छुए बिना एक अलग मुद्दे पर विचार-विमर्श किया।” 

आयुक्त द्वारा पारित दोनों आदेश व कलेक्टर द्वारा पारित आदेश को निरस्त किया जाता है। लिहाजा 24/06/2013 का आदेश, जो पत्रका बाई का नियुक्ति आदेश है और याचिकाकर्ता की नियुक्ति को रद्द करने का 24/6/2013 भी निरस्त किया जाता है।

जनपद पंचायत सीईओ के लिए यह है निर्देश

कोर्ट ने मुख्य कार्यपालन अधिकारी, जनपद पंचायत, राजनांदगांव को याचिकाकर्ता और पत्रिका बाई की नियुक्ति के लिए पेश दस्तावेजों के आधार पर फिर से जांच करने की स्वतंत्रता होगी और पक्षकारों को सुनवाई का अवसर देने के बाद उचित आदेश पारित कर सकते हैं। इस निर्देश के साथ कोर्ट ने याचिकाकर्ता की याचिका को स्वीकार कर लिया है।

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