शिक्षा का अधिकार मांग रहा एक भावी आईएएस

शिक्षा का अधिकार मांग रहा एक भावी आईएएस

छोटे-छोटे गांव और बस्तियों तक स्मार्ट फोन और इंटरनेट अपनी पंहुचा बना चुका है।

गरीब के पास मंहगे मोबाइल फोन नहीं भी हो तब भी वो इस माध्यम से अपनी बात दुनियां तक पंहुचा सकता हैं।

कहते हैं कि रईसों और मिडिल क्लास के बच्चों को मोबाइल की आदत या लत बर्बाद कर रही है

लेकिन यही मोबाइल गरीब बच्चों का भविष्य आबाद कर सकता है। इसके जरिए गरीब बच्चे शिक्षा के हक़ की लड़ाई लड़ सकते हैं।

शिवलिंग या फव्वारा जैसी बहसों और मंदिर-मस्जिद के आंदोलनों के बजाय सबसे अहम बच्चों की तालीम के लिए एक आंदोलन ज़रूरी है।
शिक्षा में पिछड़े सूबे बिहार में एक ऐसी ही अलख जली है। आशा की किरण दिखाने वाला एक गरीब बच्चा है।

सोशल मीडिया पर बिहार के ग्यारह वर्षीय ग़रीब बालक सोनू की तमाम ख़ूबियां वायरल हो रही हैं और लोग उसके दीवाने बने जा रहे हैं।

वो पढ़ना चाहता है लेकिन उसे अच्छा स्कूल मयस्सर नहीं है।

पढ़ने की जिद पर अड़ा ये बालक गारंटी दे रहा है कि यदि उसे अच्छे स्कूल में दाखिला मिल जाए तो वो मेधावी छात्र साबित होगा। सिविल सर्विसेज की परीक्षा पास करेगा और आईएएस बनकर दिखाएगा।
इसने अपनी पढ़ाई के लिए मुख्यमंत्री नितीश कुमार से गुहार लगाई और अब वो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से इल्तिज़ा कर रहा है कि उसे स्कूल में दाखिला दिलवा दें।

संभावना जताई जा रही है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उस बच्चे से बात करें और उसकी तालीम का इंतेज़ाम करें।
प्रतिभावान, हाज़िरजवाब, पढ़ाकू और आत्मविश्वास से लबरेज इस बालक को उसकी इन ख़ूबियों तक सीमित मत रखिए।

दरअसल सोनू अच्छी पढ़ाई के अधिकार को हासिल करने की कोशिश करने वाला आंदोलन है।

मुफलिसी और तमाम मजबूरियों की वजह से पढ़ाई से महरूम
देश के करोड़ों बच्चों में अच्छी पढ़ाई हासिल करने का ऐसा जज्बा दबा होगा। लेकिन सोनू ऐसा सोना है

जो मजबूरियों की हजारों मन मिट्टी को चीरता हुए अंधेरी खान से निकल कर शिक्षा के प्रकाश से अपना जीवन जगमगाने की तड़प रखता है।

इसका जज्बा और जुनून शिक्षा से महरूम देश के करोड़ों बच्चों को शिक्षा का अधिकार दिलाने का आंदोलन जैसा है।

बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार से मुखातिब होने के संघर्ष में जब वो कामयाब हुआ तो उसने न सिर्फ बिहार बल्कि संपूर्ण देश की शिक्षा नीति की पोल खोल दी, साथ ही बिहार की शराबबंदी के अर्धसत्य को भी उजागर कर दिया।

सरकारी स्कूलों में ढंग से पढ़ाई नहीं होती, संसाधन नहीं होते, वहां के शिक्षक ठीक से पढ़ाते नहीं।

सरकारें भी सरकारी स्कूलों की बदहाली को गंभीरता से नहीं लेतीं। मंहगी शिक्षा के होते गरीब या मिडिल क्लास के बच्चों को उनके अभिभावक कैसे पढ़वाते होंगे ये फ़िक्र कौन करेगा ?
गरीब, असहाय लेकिन प्रतिभावान और पढ़ाकू बच्चे सोनू के मन की बातें ऐसी कड़वी सच्चाइयों का आईना बन रही हैं। एक बच्चे का पढ़ने का जुनून बड़े-बड़ों को प्रभावित भी कर रहा है और शर्मिन्दा भी।
देश का भविष्य कहे जाने वाले करोड़ों बच्चे शिक्षा के अधिकार से वंचित हैं।

समाज और सरकारों की तमाम फिक्रों में ये अहम फ़िक्र शामिल नहीं है।
हमारे आजाद भारत की पैदाइश ही आंदोलन से हुई इसलिए यहां की आब-ओ-हवा में आंदोलनों का सिलसिला जारी रहता है।

कभी मंदिर-मस्जिद का तो कभी आरक्षण का, कभी किसानों का, कभी मजदूरों का आंदोलन।

कभी भ्रष्टाचार के खिलाफ,कभी बलात्कार के खिलाफ तो कभी लोकपाल के लिए आंदोलन। कहीं किसी यूनियन का तो कभी किसी वर्ग का आंदोलन। लेकिन कभी गरीब-वंचित बच्चों की तालीम के हक़ का कोई आंदोलन नहीं हुआ।
कल्पना कीजिए की जिस तरह सोशल मीडिया पर बिहार के लाल सोनू ने अपनी पढ़ाई की मांग के लिए कभी सीएम को तो कभी पीएम के सामने गुहार लगाई है, यदि पढ़ाई से वंचित हर बच्चा सोशल मीडिया के जरिए शिक्षा का अधिकार मांगने लगे तो सोचो ज़रा ऐसा हो तो क्या हो 
बच्चों का ऐसा आंदोलन देश की आजादी के आंदोलन से कम कारगर, दिलचस्प, महत्वपूर्ण और यादगार नहीं होगा। तो आइए सोनू की इस अलख को आगे बढ़ाइये और शिक्षा से वंचित, पढ़ने के ख्वाहिशमंद बच्चों की आवाज़ बनिए और उनकी आवाज़ को आगे बढ़ाइये।

admin

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