Bilaspur High Court: हाई कोर्ट ने ऐसा क्यों कहा- शासकीय सेवक के अधूरे इस्तीफे पर नहीं की जा सकती कार्रवाई

Bilaspur High Court: हाई कोर्ट ने ऐसा क्यों कहा- शासकीय सेवक के अधूरे इस्तीफे पर नहीं की जा सकती कार्रवाई

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Bilaspur High Court: बिलासपुर। राज्य सरकार के विभिन्न विभागों में कार्यरत सरकारी अधिकारी व कर्मचारियों के लिए छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट का यह फैसला न्याय दृष्टांत बन सकता है। कामकाज के दौरान शासकीय सेवा से त्यागपत्र देने वाले अधिकारियों व कर्मचारियों के लिए मौजूदा फैसला मील का पत्थर साबित होगा। चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा व जस्टिस बीडी गुरु की डिवीजन बेंच ने कहा है कि निर्धारित प्रक्रियाओं को पूरा किए बिना किसी भी शासकीय सेवक का इस्तीफा प्रभावी नहीं हो सकता। कोर्ट ने अपने फैसले में लिखा है कि एक बार जब इस्तीफा गैर-अनुपालन के कारण अस्वीकार कर दिया जाता है, तो संबंधित विभाग के आला अफसर पर इसे सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी बनती है कि त्यागपत्र की स्वीकृति के साथ पत्र को आगे बढ़ाने से पहले सभी शर्तें पूरी कर ली गई है या नहीं।

छत्तीसगढ़ राज्य नागरिक आपूर्ति निगम के उप प्रबंधक शैलेंद्र कुमार खम्परिया ने 26 मार्च, 2016 को व्यक्तिगत कारणों का हवाला देते हुए ईमेल के माध्यम से अपना इस्तीफा दे दिया था। नागिरक आपूर्ति निगम ने प्रारंभ में इस इस्तीफे को अधूरा होने के कारण अस्वीकार कर दिया था। विभाग ने कहा था कि ईमेल के जरिए भेजे गए त्यागपत्र में निर्दिष्ट तिथि का अभाव था और तीन महीने का वेतन जमा करने की शर्त को पूरा नहीं किया गया था। नागरिक आपूर्ति निगम ने यह कहते हुए त्यागपत्र को अस्वीकार कर दिया था। इसके बाद निगम ने सितंबर 2016 में उनका इस्तीफा स्वीकार कर लिया।

 इस्तीफा वापस लेने की मांग,तब मिली जानकारी

उप महाप्रबंधक खम्परिया ने अक्टूबर 2016 में अपना इस्तीफा वापस लेने की मांग की, लेकिन निगम ने उनके अनुरोध को अस्वीकार करते हुए इस्तीफा स्वीकार कर लिए जाने की जानकारी दी। निगम अफसरों के इस निर्णय को चुनौती देते हुए हाई कोर्ट में याचिका दायर की। सिंगल बेंच ने याचिकाकर्ता के पक्ष में फैसला सुनाते हुए निगम द्वारा स्वीकार किए गए त्यागपत्र को गैर कानूनी बताया।

 सिंगल बेंच के फैसले को निगम ने दी थी चुनौत

सिंगल बेंच के फैसले को चुनौती देते हुए नागरिक आपूर्ति निगम ने डिवीजन बेंच में चुनौती दी थी। निगम की ओर से अधिवक्ता ने डिवीजन बेंच के सामने तर्क पेश करते हुए कहा कि एक बार इस्तीफा स्वीकार कर लेने के बाद, कर्मचारी को इसे वापस लेने का कोई अधिकार नहीं है, भले ही स्वीकृति की सूचना ना दी गई हो। उन्होंने आगे दावा किया कि अधूरी औपचारिकताओं के बावजूद खम्परिया का इस्तीफा प्रभावी हो गया और निगम तीन महीने का वेतन जमा न करने के लिए जिम्मेदार नहीं है।

उप महाप्रबंधक खम्परिया के वकील ने तर्क दिया कि निगम ने शुरू में गैर-अनुपालन के कारण उनके इस्तीफे को अस्वीकार कर दिया था, और बाद में की गई इस्तीफे की स्वीकृति अमान्य थी, क्योंकि उन्होंने अपेक्षित शर्तें पूरी नहीं की थी। तीन महीने का वेतन भी जमा नहीं किया था। लिहाजा उन्हें अपना इस्तीफा वापस लेने की अनुमति देने से इनकार करना विभाग का अन्यायपूर्ण कार्रवाई है।

 हाई कोर्ट ने अपने फैसले में यह लिखा

0 किसी इस्तीफे को वैध रूप से स्वीकार किए जाने से पहले उसे सभी निर्धारित शर्तों का पालन करना चाहिए। इस मामले में, खम्परिया के इस्तीफे को शुरू में इसलिए खारिज कर दिया गया क्योंकि इसमें कोई विशिष्ट तिथि और तीन महीने का वेतन जमा करने की आवश्यकता नहीं थी। हालांकि बाद में इस्तीफा स्वीकार कर लिया गया, लेकिन ये शर्तें पूरी नहीं हुईं, जिससे स्वीकृति प्रक्रियात्मक रूप से दोषपूर्ण हो गई।

0 एक बार जब इस्तीफा गैर-अनुपालन के कारण खारिज कर दिया गया, तो स्वीकृति के साथ आगे बढ़ने से पहले यह सुनिश्चित करने का भार निगम पर आ गया कि सभी शर्तें पूरी हों। चूंकि खम्परिया ने इन शर्तों को पूरा करते हुए संशोधित इस्तीफा प्रस्तुत नहीं किया, इसलिए इस्तीफा बिल्कुल भी स्वीकार नहीं किया जाना चाहिए था।

0 नागरिक आपूर्ति निगम ने अधूरा इस्तीफा प्राप्त करने के बाद खम्परिया को स्थानांतरित कर दिया था और उन्हें विभिन्न जिम्मेदारियां सौंपी थीं, जो इस बात का संकेत था कि उनके इस्तीफे को प्रभावी रूप से स्वीकार नहीं किया गया था।

 इन कारणों के चलते निगम की अपील हाई कोर्ट ने की खारिज

अधूरे इस्तीफे पर कार्रवाई नहीं की जा सकती है और इस बात पर जोर दिया कि इस्तीफे को लागू करने का निगम का प्रयास कानूनी रूप से अस्वीकार्य था। प्रक्रियागत खामियों के कारण इस्तीफा अमान्य था, और खम्परिया इसे वापस लेने के हकदार थे। कोर्ट ने खाम्परिया के पक्ष में जारी सिंगल बेंच के फैसले की पुष्टि करते हुए निगम की अपील को खारिज कर दिया।

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