विष्णुदेव साय कैबिनेट, ओबीसी आरक्षण

विष्णुदेव साय कैबिनेट, ओबीसी आरक्षण

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तरकश, 29 सितंबर 2024

संजय के. दीक्षित

कैबिनेट में नए मंत्री?

नगरीय निकाय चुनाव के बाद ही विष्णुदेव साय कैबिनेट में दो नए मंत्रियों की इंट्री होगी, यह धारणा पलट भी सकती है। बीजेपी के अंदरखाने में इस बात पर मंथन चल रहा कि इलेक्शन से पहले नए मंत्रियों को कैबिनेट में शामिल करना कितना फायदेमंद होगा। दरअसल, मंत्रियों पर विभागों का लोड काफी बढ़ गया है। राज्य बनने के बाद कैबिनेट में कभी भी एक से अधिक सीटें खाली नहीं रहीं। 12 मंत्रियों के कोटे वाले छत्तीसगढ़ में इस समय दो मंत्रियों की जगह खाली है। याने लगभग 17 फीसदी की वैकेंसी। इसका असर कामकाज पर पड़ रहा है। राजकाज में मुख्यमंत्री को सपोर्ट करने के लिए केंद्रीय नेतृत्व ने दो डिप्टी सीएम का फार्मूला लाया था, वह लगभग सभी सूबों में निरर्थक ही साबित हो रहा है। वैसे भी छत्तीसगढ़ के दोनों उप मुख्यमंत्रियों का समय बहुत अच्छा नहीं चल रहा। फिर उन्हें अभी उतना तजुर्बा भी नहीं कि किसी मुश्किल घड़ी में वे सरकार के खेवनहार साबित हो सकें। उधर, दो मंत्री पेंशनधारी की तरह काम कर रहे हैं। याने दिन-दुनिया में क्या हो रहा, इसमें कोई रुचि नहीं। जैसे उमर हो जाने पर आदमी बाल-बच्चों को धंधापानी सौंप विश्राम के मोड में आ जाता है, उसी तरह की स्थिति इन दोनों मंत्रियों की है। उनके करीबी लोग विभाग संभाल रहे हैं। तीन नए मंत्री इतनी जल्दी में लगते हैं मानो पांच साल के लिए शपथ नहीं लिए हों। अलबत्ता, सामने नगरीय निकाय चुनाव है…और भूपेश बघेल जैसा हर बॉल को उठाकर मारने वाला विपक्ष का नेता। ऐसे में, संगठन के कुछ गंभीर नेता जल्द मंत्रिमंडल के विस्तार के पक्ष में हैं। अब देखना है कि अंतिम फैसला क्या होता है। और होता भी है तो किसका नंबर लगता है। क्योंकि, नए से लेकर पुराने तक दर्जन भर विधायक शेरवानी सिलवाकर तैयार बैठे हैं।

बड़ी घटनाएं और राजनीति

छत्तीसगढ़ में पिछले नौ महीने में दो बड़ी घटनाएं हुई हैं। पहला बलौदा बाजार आगजनी और दूसरा कवर्धा की हिंसा। बलौदा बाजार के सामाजिक विवाद में राजनीति का तड़का पड़ा और हिंसा ने उग्र रूप ले लिया। इसी तरह का कुछ कवर्धा में हुआ…साहू समाज के तीन लोग काल के गाल में समा गए। इनमें एक पूर्व मंत्री का आदमी था तो दो लोग वर्तमान मंत्री के बेहद करीबी। पूर्व मंत्री के विश्वासप्राप्त एक ने अपनी पत्नी से दुष्कर्म की थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई। आरोपी के जमानत पर छूटकर आने के बाद रिपोर्ट दर्ज कराने वाले की फांसी पर लटकी लाश मिली। इस पर भड़के ग्रामीणों ने दुष्कर्म के आरोपी के साथ उसके घर को फूंक डाला। और तीसरे साहू युवक की अग्निकांड में पुलिस की कथित पिटाई से मौत हो गई। यकीनन, बलौदा बाजार हो या फिर कवर्धा हिंसा…निश्चित तौर पर दोनों घटनाएं सूझबूझ से रोकी जा सकती थी। मगर दोनों घटनाओं को लोकल एडमिनिस्ट्रेशन ने बेहद हल्के में लिया और नेताओं ने भी।

चुनाव टाईम पर

ओबीसी आरक्षण के चक्कर में नगरीय निकाय चुनाव दो-एक महीने आगे खिसकने की चर्चाएं है। राजनीतिक पार्टियां यह मानकर चल रहीं कि जनवरी, फरवरी से पहले चुनाव संभव नहीं। मगर इस भ्रम में रहने से उन्हें नुकसान उठाना पड़ सकता है। ओबीसी कल्याण आयोग जिस गति से काम कर रहा, उससे स्पष्ट हो गया है कि न रिपोर्ट में देरी होगी और न चुनाव टलेगा। याने दिसंबर में ही वोटिंग होगी। बता दें, आयोग का सर्वे कंप्लीट हो गया है। अब कंप्यूटर में उसे फीड करने का काम चल रहा है। पिछड़ी जातियों का पूरा कैलकुलेशन करके आयोग 15 अक्टूबर तक अंतरिम रिपोर्ट सरकार को सौंप देगा। पिछले चुनाव की बात करें तो 2019 के नगरीय निकाय चुनाव की अधिसूचना 15 नवंबर को जारी हुई थी। इस बार भी इसी के आसपास चुनाव का ऐलान किया जाएगा। दिसंबर में 15 से 20 के बीच वोटिंग होगी और 31 दिसंबर से पहले रिजल्ट आ जाएगा। महापौरों का कार्यकाल 4 जनवरी 2025 को समाप्त हो रहा है। सो, राज्य निर्वाचन से जुड़े अधिकारिक सूत्रों का दावा है कि 4 जनवरी से पहले नगरीय परिषद का गठन हो जाएगा।

ओबीसी को झटका?

ओबीसी आयोग के सर्वे में पिछड़ी जातियों को आरक्षण का हल्का झटका लग सकता है। क्योंकि, इससे पहले कभी नगरीय निकाय चुनाव में ओबीसी को जनसंख्या के आधार पर आरक्षण नहीं दिया गया। इस चक्कर में बस्तर, सरगुजा जैसे इलाके जहां ओबीसी का प्रतिशत कम है, वहां भी मैदानी इलाकों की तरह उनकी 25 परसेंट सीटें मिल जाती थीं। सुप्रीम कोर्ट ने इसे गलत करार देते हुए ओबीसी के पॉपुलेशन और सामाजिक-आर्थिक आधार पर सीटें आरक्षित करने का आदेश दिया है। साथ ही कंडिशन यह भी है कि बिना ओबीसी की सीटें पुनर्निधारित किए नगरीय निकाय चुनाव न कराया जाए। इसी चक्कर में महाराष्ट्र समेत कई राज्यों में चुनाव लटका हुआ है। एमपी में अभी हाल में चुनाव हुआ, मगर नए ओबीसी आरक्षण के साथ। छत्तीसगढ़ में भी दो साल पहले ओबीसी कल्याण आयोग का गठन हो जाना था। विलंब को देखते राज्य सरकार ने आरएस विश्वकर्मा जैसे रिजल्ट देने वाले रिटायर आईएएस को इसकी जिम्मेदारी सौंपी। विश्वकर्मा कमेटी ने उन आशंकाओं को निर्मूल करार दिया, जिसमें तय मानकर चला जा रहा था कि आयोग की रिपोर्ट में देरी की वजह से चुनाव आगे जाएगा। बहरहाल, बस्तर, सरगुजा जैसे इलाकों में ओबीसी की कुछ सीटें कम होंगी मगर यह भी सही है कि मैदानी इलाकों में बढ़ेंगी। वैसे जिन इलाकों में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की आबादी कम है, वहां उनकी भी सीटें कम होंगी। फिर भी ओबीसी को नुकसान थोड़ा ज्यादा होगा क्योंकि बस्तर और सरगुजा के रिमोट आदिवासी इलाकों में पिछड़ा वर्ग की आबादी बेहद कम है।

स्टार प्रचारक

सीएम विष्णुदेव साय दो दिन झारखंड के सिमडेगा में थे। सिमडेगा उनके गृह क्षेत्र कुनकुरी से लगा हुआ है। सीएम बनने से पहले से विष्णुदेव का झारखंड के सीमावर्ती इलाकों से बढ़ियां सामाजिक कनेक्शन रहा है। तभी मुख्यमंत्री को देखने के लिए सिमडेगा में ऐसी भीड़ उमड़ी कि वहां के पॉटिशियन हैरान थे। बताते हैं, पार्टी आसन्न चुनाव में इसका पूरा उपयोग करेगी। विष्णुदेव को स्टार प्रचारक बनाने वाली है। पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व को लगता है छत्तीसगढ़ से लगी झारखंड की दर्जन भर सीटों पर विष्णुदेव साय के प्रचार से पार्टी को लाभ मिल सकता है।

आईएएस पोस्टिंग

मंत्रालय में सचिव स्तर पर एक छोटी सर्जरी और होगी। वह इसलिए कि जनवरी फर्स्ट वीक में रोहित यादव छत्तीसगढ़ लौट रहे हैं। रोहित 2002 बैच के सिकरेट्री रैंक के आईएएस हैं। 2017 में वे केंद्रीय मंत्री सुरेश प्रभु के पीएस बनकर सेंट्रल डेपुटेशन पर दिल्ली गए थे। मगर बाद में उन्होंने अच्छा जंप करते हुए पहले स्टील मिनिस्ट्री में ज्वाइंट सिकरेट्री बनें…और इसके कुछ दिन बाद प्रधानमंत्री कार्यालय की पोस्टिंग। बहरहाल, पांच साल का टेन्योर कंप्लीट करने के बाद पीएमओ से वे रिलीव हो गए हैं। छत्तीसगढ़ लौटने के बाद उन्हें कोई ठीकठाक ही पोस्टिंग मिलेगी। क्योंकि, एक तो वे पीएमओ से आ रहे हैं और दूसरा वहां वे इंफ्र्रास्ट्रक्चर देख रहे थे। पीएमओ में इंफ्रास्ट्रक्चर को काफी महत्वपूर्ण माना जाता है।

सक्रिय राज्यपाल

छत्तीसगढ़ के नए राज्यपाल रमेन डेका सक्रियता के मामले में पहले के राज्यपालों से आगे हैं। वे खूब दौरे कर रहे हैं और प्रशासनिक अफसरों की बैठकें भी। इससे पहले आईपीएस बैकग्राउंड के पूर्व राज्यपाल नरसिम्हन राजधानी के अफसरों को समय-समय पर अवश्य बुलाकर बात करते थे मगर जिलों में कभी इतना सक्रिय नहीं रहे। हालांकि, उस समय केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी। फिर भी नरसिम्हन के चलते उस समय के सीएम डॉ0 रमन सिंह को कभी उलझन का सामना नहीं करना पड़ा। नए राज्यपाल रमेन डेका भी किसी तरह के विवादों में नहीं पड़ना चाहते। तभी बैठकों से पहले ये जरूर क्लियर कर देते हैं कि ये समीक्षा नहीं है, उनका उद्देश्य सिर्फ जानकारी लेना और प्रायरटी वाली योजनाओं को बताना है। जिला प्रशासन की बैठकों में राज्यपाल का उन्हीं मुद्दों पर जोर रहता है, जो केंद्र की टॉप प्रायरिटी वाली योजनाएं हैं। जाहिर है, राज्य सरकार को भी इससे कोई दिक्कत नहीं होगी। फिर विष्णुदेव साय जैसे सहज सीएम को तो और नहीं।

अंत में दो सवाल आपसे

1. विष्णुदेव कैबिनेट में कौन से दो मंत्री पेंशनभोगी टाईप काम कर रहे हैं?

2. इस बात में कोई सत्यता है कि प्रधानमंत्री सड़क योजना कोई ठेकेदार चला रहा है?

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